Sunday, July 14, 2019

हम लोग : जाति है कि जाती नहीं...

साक्षी मिश्रा और अजितेश कुमार, एक ब्राह्मण लड़की और एक दलित लड़का, इनकी शादी और फिर लड़की का अपने पिता से अपनी और अपने पति की जान को खतरा बताते हुए जनता से मदद मांगने का विडियो सोशल मीडिया पर जारी करना, किसी आने वाली फिल्म का सीन हो सकता है. 23 साल की साक्षी को अंतरजातीय विवाह करने पर पिता की तरफ से उसकी सजा का डर. वो कानूनी मदद के लिए कोर्ट पहुंचे हैं. सुप्रीम कोर्ट ये फैसला शक्ति वाहिनी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया मामले में ये फैसला दे चुका है कि इज्‍जत के नाम पर की क्रिमिनल कानून के त‍हत आएगा. साथ ही ये किसी भी वयस्‍क और मौलिक अधिकार के खिलाफ है. संविधान का अनुच्‍छेद 21 ये अधिकार देता है कि कोई भी वयस्‍क अपनी पसंद-नापसंद के अधिकार का इस्‍तेमाल कर सकता है. कुछ समय पहले ये खबर आई थी की गुजरात में एक दलित लड़के को पुलिस की काउंसिलिंग टीम के सामने उसके ससुराल वालों ने मार डाला क्‍योंकि दलित होकर उसने उनकी लड़की से शादी की हिम्मत की. दलित लड़कों के लिए किसी सवर्ण लड़की से शादी करना जानलेवा साबित होता है और लड़कियां तो किसी भी समाज की हों, दलित या सवर्ण उन्हें अपने फैसलों को लेने का अधिकार कम ही मिलता है जबकि आधुनिक भारत के निर्माता आंबेडकर ने इंटर कास्ट शादी को जाती या वर्ण व्यवस्था को तोड़ने के लिए सबसे ज़रूरी माना. साक्षी और अजितेश की कहानी में जातिवादी मानसिकता भी है, पितृसत्तात्मक सोच भी.

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